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________________ जिसराजरि-कृति-कुसुमांजलि घाट घड़ी रतने जड़ी रे, कनक दडी ले उट रे ना० चोट करइ नीकइ तकी रे घोटांकइ सिर दोट रे ना०॥८॥ चटकइ चटपट चालवइ रे, बगू लटू फेरि रे ना० रंग रगोली चक्रडी रे, फेरइ नीकइ घेर रे ना०111 बहिनी लूण उतारती रे,अइसइ द्यइ आसीस रे ना० चिरजीवे तूनानडा रे, कोडाकोड़ि वरीस रे ना०॥१०॥ बाललीला जिनवर तणी रे, सवही कइ मन भाई रे ना० 'राजसमुद्र' गुण गावतां रे, आणंद अंग न माइ रे ना०॥११॥ श्री ऋषभ जिन कर संवाद राग-सामेरी रिषभ जिन निरसन रान विहारो पाणि परस्पर वाद मंडाणउ, तिण भोजन विधि वारीरि० कनक दान मई वंछित दीनउ, जगमई सोह वधारी। अंत पंत ऊन मागत लज्जा, क्यु करि रहई हमारी ॥२॥रि० जिनवर पूजा लगन थापना, भोजन परणण नारी। तिलक करण भूपति अभिषेकड, इहां तउ हूं अधिकारी ॥३रि० इम उत्तम कारिज बहु कीने, तिण ए विधि न पियारी। दक्षिण कर वामइ प्रतइ यु कहइ, तु होइ भिक्षाचारी ॥४॥रि. वाम कर तव अइसइ बोलत, तु झूठउ अहकारी। जोतिप मूल गणत अभ्यासइ, मुझ अधिकाई सारी ॥५॥रि० जग जीवन कारण कण वावरण, लणिवा हु उपगारी । जब संग्राम मुखइ भागइ तु, तब हु रक्षाकारी ॥६॥रि०॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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