SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ जिनराजसूरि- कृति - कुसुमांजलि नेसु हो तुम्हचइ निसदिन रूसणर हो, माहरइ तिण सु ́ प्रीति ॥ १ ॥ नेहनइ हो तर वनवास दोयउ हुतउ हो, घरतउ नवि बेसास सेहन हो आदर सुतेडाविनइ हो, मइ राख्यउ छइ पास ||२|| जिण सु हो कईयs मीटिन मेलणउ हो, करतउ कुरुख सदीव । मइ तिण भुं हो एकारउ माडियउ, लागउ माहरउ जीव |३| वयण न लोपइ तू पिण जेहनउ हो, काम काढू पिण जेह । नाक नमिण पिणन करू तेहनइ हो, परठि अछइ मुझ एह ॥४ मुझकरणी साम्हउ न जोइयइ हो, वीरसेन 'जिनराज' । पर दुख कातर विरुद विचारनइ हो, दरसण दे महाराज १५ । (१८) श्री देवजस जिन गीतम् देशी - वेग पधारउ महलां थी सरंमुख साहिबनाई मिल्या, फेर पडइ कुजकोइ ओलगडी अलग रहयां, सदेसड न होइ ॥ १ ॥ देवजसा दरसण दीयउ, ए मुख खरी रुहाड़ि । अतुली बल जिम तिम करो, एह प्रमाणइ चाडि ||२||दे० || जउ छोरु करि जागस्यउ, तउ पूरवस्यइ लाडि । मलवेसर इण वातनउ, मत को जाणउ पाड ||३||दे० ॥ - मन नी वात सहु कहुं, जउ भेटु जगनाथ । कहिवउ तउ छइ मुझ वसू, करिव छइ तुम्ह हाथ || ४ || दे० बहती वात सहू करs, पर पूठइ 'जिनराज' । पिण मुरइ न मिटी सकइ, दीवानी हुवइ लाज ॥५॥ दे० ॥ -
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy