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________________ hc २६ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि साजणिया पिण दुरगति जे दीयइ हे, तिण थी दूर रहीजइ हे । छोडावइ जे गरभावास थी हे, तिण सु सकति मलीजा हे ॥४ाजो०॥ नामजपीजइ श्री चंद्रवाह नउ हे, निसिदिन ध्यान धरीजइहे। ते सलहीयइ जइ कर 'जिनराज' नउ हे, जिण करि लेख लिखीजइ हे ॥शाजो०॥ (१४) श्री भुजंगम जिन गीतम ढाल-१ श्री विमलाचल सिर तिलउ, २ दीवाली दिन प्रावियउ सामि भुजंगम ताहरउ, नाम जपइ सहु कोइ । पिण तेहनी परि तइंतजी, तिण मुझ अचरिज होइ ।सा। तूं सपगउ पग रोपिनइ, चाढइ बोलि प्रमाण । आगम वचनइ तूंचलइ, न चलइ हीया त्राण ॥२॥सा०॥ गयवर गति चालतउ, न धरई तिल भर बांक । मोर गरुड़ सेवा करइ, नाणइ केहनो सांक ॥३॥सा०॥ दो जीहउ पिणतूनही, न धरई विष लवलेस । अमीय समारणे बोलड़े, दयइ सहु नइ उपदेस ॥४ासा०।। अथवा नाम भुजंगम मइ, साच कहइ कविराज । अवर सहू सपलोटीया, तू मणिधर 'जिनराज' ॥शासा०॥ (१५) श्री नेमि जिन गीतम् हाल-१पास जिरगद जुहारीयइ जी,२ वीर वखाणो राणी चेलणा जी नेमि प्रभ माहरी वीनती जी, सांभलउ धरम धुरीण । फेरव तुझ विचइ तेहवउ जी, को नही जाण प्रवीण ॥१॥ हुँ तुझ दास तूं मुझ धणी जी, आपणई सगपण एह ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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