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________________ श्री वर्तमान जिन चतुविशतिका जिम जिम गुरुमुखि प्रभु गुण सांभलु,तिम तिम तनु उलसंति परमेसर पीहर प्रापति पखड, परतिख केम मिलंति ॥३॥स० सुख दुखनी पिण वात न का कही, बि घडी बइसी पास। घाट कमाई पोता तणी, तउ किम पूजइ आस ॥४॥स०॥ समरि समरि रसना रस वस करड, नमि गुण गान रसाल ।। श्री 'जिनराज' जनम सफलउ करइ, इण परि इण कलिकाल ||शास०॥ (२२) श्री नेमिनाथ जिन गीतम् राग-रामगिरी सांभलि रे सांमलीआ सामी, साच कह सिरनामी रे। बात न पूछइ तु अवसर पामी, तउ स्यानउ अ तरजामी रे ॥१॥सा०॥ आगलि ऊभा सेवा कीजइ, पिण तु किमही ईन रीझ रे। निसदिन तुझ गायउ गाइजड, पिण तिलमात्र न भीजइ रे ॥१॥सा०॥ जउ अझनई भवसायर तारउ, तर स्युजाइ तुम्हारउ रे । जउ पोतानउ विरुद संभारउ, तउ कांइ न विचारउ रे ॥३॥सां०॥ हु स्युतारु हु तारक स्यउ, ईम छूटी पडी न सकस्यउ रे । जउ अझनइ सेवक त्रेवडिस्यउ, त वात इयां मांहि पड़स्यउ रे॥४॥सां०॥ ओछी अधिकी वात वणाइ, कहतां खोडि न काइरे। भगतक्छल 'जिनराज' सदाई, किम विरचइ वरदाई रे।।सासां०॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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