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________________ M श्री वर्तमान जिन चतुर्विंशतिका चउरासी लख चोलणा, पहिरया नव नव भातो रे ॥१शाना०॥ कोछ कपट मद घूघरा, कठि विषय वर मालो रे। नेह नवल सिरि सेहरउ, लोभ तिलक दे भालो रे ॥२॥ना०॥ भरम भुउण मन मादल, कुमति कदाग्रह तालो रे। क्रोध कणउ+कटि तटिवण्यउ,सव मंडप चउसालोरे॥३॥ना०॥ मदन सवद विधि: ऊगटी, ओढी माया चीरो रे । नव नव चाल दिखावतइ, का न करी तकसीरो रे ॥४॥ना०॥ थाकउ हुहिव नाचतउ, महिर करउ महाराजो रे । बारम जिनवर आगलई,इम जंपइ 'जिनराजो' रे॥शाना०॥ (१३) श्री विमलनाथ जिन गीतम् राग-धन्यासी, ढाल-रहउ चतुर चउमास, घर अगण सुरतर फल्यउ जी, कवण कनकफल खाइ। गयवर बाधउ बारणइ जी, खर किम आवइ दाइ ॥१॥ विमल जिन माहरइ तुम्ह सुप्रेम ।। सुर सकलकित सु मिल्या जी, हीयडउ होसई केमा॥२॥वि०॥ मन गमता मेवा लही जी, कुण खल खावा जाइ। आदर साहिब नउ लही जी, कुण ल्यइ रांक मनाई ॥३॥वि०॥ पाच छतइ कुण काचनइ जी, अलवि पसारइ हाथ । कुण सुरतरु थी ऊठिनइ जी, बावल घालइ बाथ ॥४॥वि०॥ देव अवर जउ हु करुंजी, तउ प्रभु तुमची आण श्री 'जिनराज' भवो भवे जी, तूहिज देव प्रमाण ॥५॥वि०॥ * धुवन मद. ४ टालो. + तरणउ.: विभि
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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