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________________ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि (२) श्री अजितनाथ गीतम् राग-गुड मल्हार जाति कड़खो तार करतार ससार सागर थकी, भगत जन वीनवइ राति दीसइ । अवर द्वारातरइ जाइ ऊभा रहयां, ताहरउ पिण भलउ नही दीसइ ता०॥१॥ आपणइ कोडि कर जोडि जे ओलगड, दास अरदास ते करण पावइ । पिण धणी जो हुवइ जाण सेवा तणउ, तो किसु भगत पासइ कहावइ ।।ता०॥२॥ माहरउ कथन मन मांहि जो आणस्यउ, पूरस्यउ तउ सही एह आसा । केड लागा तिके केड़ किम मूकिस्यइ, नेट का एक करिस्यउ दिलासा ॥ता०॥३॥ स्यू वलि तारवा के नवा आविस्यइ, अजित जिन एतलउ जे विमास्यइ । अकल 'जिनराज' नउ माजनउ कुण लहइ, 'सही ते तरइ जे रहइ पासइ ता०॥४ (३) श्री संभवनाथ गीतम् राग-सोरठ, गौडी । विणजारा रे नायक सभवनाथ, साथ खजीनउ सीतरउ विणजारा रे।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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