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________________ निमन्त्रण-कितना मधुर सरस और भाव भीना हैमोरी वहिनी हे वहिनी म्हारी । मो मन अधिक उछोह है, हां चालउ तीरथ भेटिवा ॥म्हा० ॥ सवेगी गुरु साथ हे, हाँ तेडीजइ दुख मेटिवा ॥१॥म्हा०।। चढिमुंगढ़ गिरनार हे, हाँ साथइ सहियर झूलरइ म्हा०॥ सजि वसन शृगार हे, हाँ गलि झाबउ मकथूल रउ ॥२॥म्हा०॥ राजल रउ भरतार है, हा जादव नंदन निरखिसुम्हा०॥ पूजा सतर प्रकार हे, हाँ करिसुहियडइ हरखिसु ||शाम्हा०॥ अदबुद आदि जिरिंगद हे, हाँ 'खरतरवसही' जोइसुम्हा०॥ ममियझरइ श्री पास हे, हाँ मल कसमल सवि धोइसु थाम्हा. पृ० (४२) कही कहीं विरहादि वर्णन में प्रकृति चित्रण के लिए भी अवसर मिल गया है। यहां जो प्रकृति पाई है वह स्वतंत्र रूप में होकर उद्दोपन रूपमे है । नेमिनाथ के विरहमे राजुल तडफ तड़फ कर चतुर्मास बिताती है श्रावण, भाद्रपद, ओसोज और कार्तिक का वर्णन इसी पृष्ठभूमि मे आया है श्रावण मास का चित्र देखिये'श्रावण मइ प्रीयउ संभरइ, वूद लगइ तनु तीर । खरीन दुहेली घन घटा, कवरण लहइ पर पीर ॥ पर, पीर जोरपत पापी, पपीहउ प्रीउ प्रीउ करइ । ऊमई वाहर घटा चिंहु दिसि, गुहिर अंबर घरहरइ ॥ दामिनी चमकत यामिनी भर, कामिनी प्रीउ विरण टरइ। घन घोर मोर कि सार बोले, स्याम इण रितु संभरइ ।। (पृ०४६) 'शालिभद्र धन्ना चौपई' कवि की महत्वपूर्ण कृति है इसकी कई हस्तलिखित.प्रतियाँ भांडारों में पाई जाती हैं। अकेले अभयजैन ग्रंथालय, बीकानेर मे इसकी २० प्रतियां हैं । सचित्र प्रतियो (4)
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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