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________________ श्रासीच गछ' सव थहराये जाके भय, ऐसो जोर चकतो हुवौ न कोउ भाखी हो । श्रीय 'जिनस घ' पाट मिल्येउ साहि सनमुख, 'धरमसी' नदन सकल जग साखी हैं। कहे 'कविदास' षट्दरशन कु उवार, शासन की टेक 'जिनराजसूरि' राखी है । 'आग'' तखत आये सबही के मन भाये. विविध वधाये संघ सकल उछाह कु ।' राजा 'गजस घ' 'सूरस ंघ' 'सरप खान', 'आलम' 'दीवान' सदा सुगुरू सराह कुं ॥ कहे 'कविदास' जिरणसिंघ पाट सूर तेज, अगम सुगम कीने शासन सुठाह कु ८ • मिगसर बहु ( ल ) चोथ' 'रबिावाव' शुभ दिन, मिले 'जिनराज' 'शाहिजहाँ' पतिशाह कु इस मिलन के सम्बन्ध मे दानसागर भंडार की एक भाषा पट्टावली मे लिखा है 'सं० १६०६ श्री श्रागरा मोह पहली प्रासखान नई मिल्या | तिहाँ ब्राह्मणां सूं वाद करि, श्राठइ ब्राह्मण हारथा । सिबखान निपट खुसी थया । तिवार पछी को मइ पात साहसु तुमक मिलावू गा । तिवारं मिगसर वदि ४ श्ररित्यवार पातितसाह साहजहाँ नइ मिल्या । त्रिहजारी बी ॐवराबो : सामामूकि तेडाया, घरगउ श्रादर दिउ अनइ केतरेक देसे यति रह न सकता ते पिरण तिवार पछि रहता थया । धरणा अवदात छइ ।' अन्य एक महत्वपूर्ण घटना आपके आचार्य पद प्राप्ति के पहले की पट्टावलियो एवं शिलालेखो मे उल्लिखित है कि मारवाड के घधारणी गांव में सं०, १६६२ मे बहुत सी प्राचीन जैन प्रतिमाएँ प्रगट हुई थी । मुसलमानी साम्राज्य के भय से उन प्राचीन प्रतिमालोको कभी भूमि- गृहमे बंद करके रख दिया गया था । जेठ सुदि. (())
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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