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________________ २६४ जिनराजसूरि कृति-कुसुमांजलि सु खडी सुखम सुगाल सूल ATRI व व व व व सीझस्यइ ७० सिद्ध होगा हाउ १८० हौआ सुकयत्य १५८ सुकृतार्य हाच विछाई. १४८ अचल १७७, २२७ मेवा पसारकर मिष्ठान्न हत्यइ १७७ हाय को ५५ सूक्ष्म हाथाल २३८ शक्तिशाली २३७ सुकाल लवे हाथ वाला सुरगइ ५५ देव गति हाम २२, १२७ १८४ सुहम ५४ सूक्ष्म इच्छा स्वीकृति सुहणा २०१ स्वप्न १७३ चलता है सुहिणो १३० स्वप्न हालरियइ १८० लोरी सूग १५५ घृणा हालाहल १६९ जहर सूड ३९ सूदन हालरो १५१, १७७ लोरी सूयइ १७७ सोती है हालिरउ ६९ पुत्र १४१ समाधान ५५ अव सूहव २३५ सुहागिनी हिव २३० अव सेहो १३८ मुकुट हिवइ २१० अब मैवसि १३४ अपने वश सोवन २३८ स्वर्ण हिवणा ७८ अब सोस १.८ चिन्ता सोह १८१ नोभा सस्थान हुकलइ सोहग २३१ वाजा ५४ सौभाग्य ५५ ढग हुलरावती १७७ बच्चे को हटकई १७७ डाटती है लोरी देकर हटकण री १७७ डाटने की खेलाती १४५, १५४ डाटी ८,१६,३४, १३६ फटकारी स्नेह, प्रेम हमाल १२७ मजदूर ७५ नीचे हवासी २४१ ढग, अच्छा ५२, १६३ सहज हसीय गुदारै १४८ हसकर १९८,२१९ सहज मे टाल देना होडि १८२ तुलना हु डिक हटको हेलइ हेलि
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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