SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनराजसूरि रास २४३ सबल विछित्ति करो पयसारउ, अरजुन माल्हू राय । दसारणभद्र राजानी परि, बाँदइ सदगुरु पाय ।।४५।। नांदि मडावि चउथ उ व्रत लेई, गुरु मुखि करमसी साह । गाम माहे हवासी लाहे, लीघउ लखमी लाह ।।५।। जेसलमेर चउमास करीनइ, पाली पाटण पावइ । चैत्य प्रतीठ करी रह्या तेहबइ, सघवी भूठइ तेडावइ ।।५६।। नगर सेठ नेतउ साह वांदइ, श्री सघ सुगुरु पाय । पाटरिण नगरि रहया चउमासउ, राजसूरि निर पाय ॥५७॥ अहमदाबाद नउ श्री सघ प्रावी, अाग्रह करी अपार । श्री जिनराज सुगुरु नइ राख्या, चउमासुसुविचार ॥५८॥ पाठक वाचक दीक्षा देई, सगलउ गच्छ सन्तोष।। वस्त्र पात्र अन पान स घाति, साधु पात्र नइ पोषई ।।५९।। चउरासी गछ माहि भट्टारक, को नहीं ताहरइ तोलइ । श्रीजिनराजसूरि चिरजीवे, जयकीरति इम बोलइ ॥६०।। [सर्व गाथा २३५ ] ॥हा॥ बड वखती बड साख जु, बाध्यउ तुझ परिवार, सीस सवाई ताहरइ, घरणा थया सुखेकार ॥१॥ पाश्वनाथ नी सानिधि, कीधी ए अखियात । घांधणी प्रतिमा तगी वांची लिपि विख्यात ॥२॥ सहगुरु - साधी अबिका, थई कहइ परतक्ष । भट्टारक पद पाँचमइ, वरसइ पामिसि दक्ष ॥३॥ मिल्या जिके कहया अबिका, बीजा बोल पचास । करइ सानिधि गुरु राज नइ, हाजरि रही उल्लास ॥४॥ जयतिहमरण समरपा थकी, महिरूपइ धरमिंद । वोल्यउ थाइसि वच्छ तु खरतर गच्छ मुरिंगद ॥५॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy