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________________ श्री जिनराजसूरि रास २३० ढाल-आठमी, जाति वेलिनी, रोग-आसाउरी श्री जिनराजसूरीसर आवइ, परिवरया मुनिवर थाट । प्राया एम वधाऊ बोल्यउ, जोता जेहनी बाट ॥१॥ मागम सालि स घ सहू को, हरषित थयउ अपार । वधाऊ नइ वधाई देई, स घ वांदइ गणधार ।।२।। एह वात सुरिग राउलजी परिण, संतोपारणा मूकइ । कुमर मनोहरदास नइ मोटा, अवसर थी नवि चूकइ ॥३॥ जीवराज भरणसाली भावइ, पइसारउ करि आण्या। प्राग्रह मानि चउमासउ रहिया, सगले लोके जाण्या ॥४॥ श्री गुरुराज प्रभावि घरणा मेह, वूठा थयउ सुगाल।। देस मांहि जस सबलङ गुरु नउ, बोलइ बाल गोपाल || घरम तरणी महिमा थई सबली, देहरइ पूजी स्नात्र । सामायक पोषउ पडिकमरणउ, पोषीजइ सद पात्र ||६|| सूत्र सिद्धांत व चावइ श्री सघ, स भलइ अधिकइ भाव । परजुषणा परबइ संघ परघल, धन खरचइ लहि दाव ॥७॥ अमरसिंह सुत साह सवाई, धोरी जीदउ साह । पोसीता नइ दीयइ रूपईयउ,सेर खाड उच्छाह ॥८॥ वाँदिवा कुमर पधारइ दिन प्रति, राउल-दे बहुमान । भोजिग भाट गध्रप जे आवइ, पामइ वंछित दान ॥६॥ कुसल खेम चउमास करीनइ, जेहवइ करइ विहार । तेहवइ परतीठ करावइ बिबनी, श्रीमल साह मल्हार ॥१०॥ घरम, धुरंधर धरम तणी करइ, करणी विविध प्रकार । सात खेत्र वितवावरइ मापरणउ, सफ़ल करइ अवतार ॥११॥ लोद्रपुरइ जीरण प्रासाद नउ, जिरिण कीघउ उद्धार । गामि गामि खरतर गच्छ माहे, भरावइ ज्ञानभडार ॥१२॥ दीन हीन दुखियांनई भरथइ, मडावइ सत्र कार।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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