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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई २०६ साम घेयनइ कारणइ, काप्ट डाम कुश बधि । तुरत तेह पाछउ वल्यउ, साझ तणी तिण* संधि ॥२॥ होणहार, सुख दुख तराउ, कारण किम मेटाय । चोट जुडइ जिम दूखतइ, काँगउड़इ भेटाय ||३|| [सर्व गाथा ४६३] . ढाल-२५ नायक मोहि नचावीयउ-पहनी-देशी सोमिल देखी मुनि भणी, कोप करी विकरालो रे। चितइ इण पापी तगउ विरूअउ एह हवालो रे ||१||सो॥ इण छंडी मुझ कन्यका, तिणनी गति सी थासी रे। निरधारइ ते एकली, पाप थयो वनवासी रे ||२|सो।। तिल भर इण नीठुर तणउ, तिगि ऊपरि नवि रागो रे। माथइ लगि कब आवसी, अगूठारी आगो रे ॥३॥सो०॥ जमवारइ लगि जाणतो, ए नवि देसी छेहो रे । नेह एहनउ कारिमउ ठार तग जिम त्रहो रे||४||सो०|| पारि ऊभगियइ नही, उत्तम ए याचारो रे। मुझ कन्या इण परिहरी, अधम एह निरधारो रे ||शासो०।। मई दीठउ हरि सामहउ, छोकरवाद न सोच्यउ रे। हिव पछतावउ अति घराउ, नवि पहिली आलोच्यउ रे ॥६॥सो०॥ प्रांत्रलूहण माहरइ हुती, जे कन्या परधानो रे । किम सहसी ते एहवउ, कठिन विरह असमानो रे ॥७॥सो०॥ इण नइ मति सी ऊपनी, अनरथ एह स्यउ कोघउ रे। इमही जनम अफल कियउ, नवि खाधउ नवि पीघउ रे सो०॥ विरण दूषण इण पापीयइ, तुरत तेह किम छडी रे। अतरं खबर नाका पडइ, मुड थयउ पाखड़ी रे सो०॥ *ण xकदि
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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