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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई १६१ बगला बइठा आइ । भमरउ को न सक्यउ रही ॥७॥जी॥ घडीय घडो नई छेह । दड पडयऊ धन किम रहइ । जी० सोरठ ऊपरि जेह । पड़तउ इम सहु नइ कहइ ॥८॥जी० निसि दिन गमन अभ्यास । पास उसासइ मिस धरइ। जी० तेहनउ स्यउ वेसास । जो जाऊं जाऊ करइ ॥६॥जी॥ पगि पगि दोसो जाल। किमही न रहइ नाखतउ । जी. तरुणउ गिरणइ न बाल । काल रहइ नितु झाखतउ ॥१०॥जी॥ ते को मत नइ तत । यत्र न को वलि ते जड़ी। जी० मतुली बल अरिहत । टाली न सकइ ते घड़ी ॥१शाजी०॥ करबी ते करतूत । धाडिन का विचि मई पडइ। जी० पाड़ोसणि रा पूत । ताती किम वाहर चडइ ॥१२॥जी॥ परजन लोका लाज । दसड गला पहुचावासी । जी० जपइ इम जिनराज । साथि कमाई पावसी ॥१३॥जी०॥ [सर्व गाथा २८७] ॥ दूहा ।। वारिण सुणी जिनराज नी, श्रावइ अवर न दाइ। मोहयउ मधुकर मालती, अलबि अरणि न सुहाइ ॥१२॥ कलिमल पक पखोलिवा, निरमल गग तरग । चोल तरणी परि माहरउ, लागउ अविहड रग ।।२।। लागइ भूख न का त्रिखा, ऊभा रहइ छम्मास । कईयइ कोनइ उभगइ, सुरगतां वचन विलास ॥३॥ सांभलता सुख सपजइ, ते किरणही न कहाइ। गू गउ गुल खाघउ कहइ, काख बजाइ बजाइ ॥४॥ सूधि वाणी न सरदही, लहि मानव अवतार । मा धुरिति* मारी पछइ, धरती मारइ भार ॥शा टालइ जनम मरण जरा, वाणि सुधारस रेलि । मोहइ बारह परषदा, साची मोहणवेलि ॥६॥ *देसी xधति, धुरिथि
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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