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________________ अकवर के विशाल साम्राज्य में जीवहिंसा निषेध कर दी गई। इसी प्रकार 'खभात के समुद्र से १ वर्ष तक कोई भी मछली नहीं पकड सकता' ऐसा फरमान जारी कर दिया गया । इतना ही नहीं सम्राट अकवर ने जैन धर्म मे जो सवसे अधिक महत्त्वशाली पद 'युगप्रधान' है उससे आपको विभूषित किया इस प्रसंग पर बीकानेर के मत्री कम च द वच्छावत ने 8 हाथी, ६ गांव, ५०० घोड़े आदि कुल मिलाकर सवा करोड का दान दिया। १६६८ में जव किसी कारण से सम्राट जहागीर ने समस्त श्वेताम्बर साधुओं को देश से निकालने का हुक्म जारी कर दिया तो सारे जैन-संघ में सववली मच गई । तब जिनच द्रसूरि पाटण से आगरे पहुंचे और जहाँगीर से मिल कर उस घातक आदेश को रद्द करवाया। ऐसे महान् प्राचार्य के शिष्य वाचक मानसिंह हुए जिन्हे सम्राट अकवर और जहाँगीर तथा अनेक राजा महाराजा सम्मान देते थे। सम्राट अकबर के प्राग्रह से वे काश्मीर-विजय के समय सं०१६४८मे उनके साथ गए थे और श्रीपुर काश्मीर तक इनके उपदेश से सम्राट ने अभारि प्रवर्तित की उनके साध्वाचार से प्रभावित होकर सम्राट अकवरने काश्मीर से लौटने पर जिनचंदसूरिजी से इन्हें आचार्य पद दिलवाया था। जिनजदसूरि जी के 'युगप्रधान' पद का महोत्सव और मानसिंह जी का प्राचार्य-पद महोत्सव मंत्रीश्वर कमचंद ने एक साथ ही किया था। आचार्य पद के बाद मानसिह जी का नाम जिनसिंहसूरि रखा गया। अकबर ने जब जिनचंदमूरि जी को बुलाया था तो आप सूरिजीके आदेश से उनसे पहले लाहौर पहुच कर सम्राट से मिले थे। उन दिनों शाहजादा सलेम के मूलनक्षत्र मे कन्या हुई थी। इसके दोष निवारण और शान्ति के लिए अष्टोत्तरी शान्ति-स्नात्र महोत्सव वाचक मानसिंहजीने करवाया था। जिनराजसूरिजी उन्ही जिनसिंहसूरिजी के पट्टवर शिष्य थे। (च)
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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