SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ जिनराज सूरि-कृति - कुसुमांजलि भुज लांबी यूप तरणी परइ, साथल कदली सम सोह हो । जंघा गज सूडि तरणी परइ, जोवता वाघइ मोह हो ||६||सो० ॥ जसु चरण कमल कछप समा, नख सोहइ जिरग विध सीप हो । उद्योत करइ दिन राति जे, दीपइ जागे बहु दीप हो ||१०|| सो० ॥ नख सिख इम रूप विचारताँ, कहताँ न जुडइ उपमान हो । तउ पिण कविजन मन कलपना, आरणइ निज मति अनुमान हो ||११|| सो० ॥ [ सर्व गाथा २३० ॥ दूहा ॥ चउदह विद्या च पसू, सीखइ श्रोभा पासि । सगली श्राई सामठी, थोड़ड़ ही अभ्यास ||१|| कला बहुत्तरि पुरुषनी, जारणइ चतुर सुजाण । तउ पिरण तिल भर मद नही, ए उत्तम श्रहिनार |२ || विद्या गुरु हैती वध्यउ विनय तरगड सुर गुरु पिरण जीपइ नही, करतउ जिरग सू भाव भेद जागइ भला, अलकार वडा कवीसर वरणवइ, जिगनइ मूकी मान ॥ ४ ॥ [ सर्व गाथा २३४ ] परसाद । वाद ||३|| उपमान । ढाल - १४ मुझनइ हो दरसण न्यायन तू दीयइ* ए जाति रिद्धिमत मतिमंत । मोमिल माहरण तिरण नगरी वसइ हो, च्यार वेद जारणइ कुल थिति x रहइ हो, सुचि थापइ एकत ॥ १ ॥ सो० ॥ मोमसिरी जसु नामइ सुदरी सोभा गिरिंग सुकमाल । जागड रमणी नी चउसठि कला, नवि को मर्न जजाल ||२|| सो० ॥ * कागलिउ करतार भरिण सी परि लिखूं - एहनी Xतिथि बरे हो
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy