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________________ १५८ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि ढाल-२७ राग-चौपाई नी. कीधो मासखमण पारणो, तनु प्राथाम जारिग श्रापरणों । आगलि करी श्री गौतम साम, ते पूछइ प्रभु अवसर पाम ॥१॥ जिरण कारण भाडो दीजतो, हिव ते लाभ नथी दीसतो। असनादिक चौविह आहार, तेह तणो करिवो परिहार ॥२॥ प्रभु भास' सुख थाय जेम, देवाणुपिय करिवो तेम। . तहत वचन करि वेऊ चल्या, गौतम सामि सखाइ मिल्या ।।३।। मन वच काथाई वसी करी, जे दूषण संजम प्रासरी। लागा हुता ते स भार, पालोवै निदे तिणवार ॥४॥ चौरासी लख जोनि खमावि, सबहू स्यु करि मैत्री भाव । मन सुधि प्रणमी सयल जिनेश, धर्माचारिज वीर विशेष ॥१॥ अरणसण ले पादपनी पर', इण्ट कत काया परिहरै। च्यार चतुर शरणा उचर', आपणपै पापो ऊधर ॥६॥ हिव धरती मन अधिकी जगीस, आगलि करि बहुयर वत्रीस । भद्रा रिद्धि तणे विस्तार. समवशरण पहुती जिणवार ॥७॥ दे परदक्षण वीर जिणंद, वादया अवर मुनीसर वृद । नयण न देखै साल महत, कर जोडी पूछे भगवत ।।८।। चढि वैभार शिखर मुनिराय, प्रादरि अगसरण छोडी काय । प्रभु मुख एह वचन साभली, भद्रा माता धरणी ढली ॥६॥ विविध विलाप तिसी परि कीया, जिरण फाटे विरहातुर हीया। साथे वहुले गिरिवर चढी, पोढयो, सुत देखी आरडी ॥१०॥ साथि श्रेणिक अभयकुमार, ते समझावै वारोवार । गरिणये तासु जन्म सुकयत्थ, जे व्रत धर साधे परमत्थ ॥११॥ ॥हा॥ पेखि सिलापट ऊपर, पोढयौ पुत्र रतन्न । हीयड़ा जो तू फाटतो, तो जाणति धन धन्न ॥१॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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