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________________ शालिभद्र धन्ना चोपाई दिन प्रति कामरण छोडंतां, दल मयरण तरणा मोडता । हिव जिरण परि धन्नो श्रावे, ते पिरण जिनराज सुरगावै ॥२४॥ ॥ दूहा ॥ बहिन सुभद्रा तिग नगर, धन्ने घरि सुविदीत । सनान करावरण मवसरे, बधव आव्यो चित ॥१॥ रोम रोम सालै अधिक, विरह विथा तिरा वार । होयडो लागो फाटिवा, नयरण न खडे धार ॥२॥ दीस घणु दयामरणी, आज खरी दिलगीर । कहि केइ दूज दूहुवी, नयरण भरें तिरण नीर ||३|| सालिभद्र सरिखो अछे, बधव श्रमलीमारण । पाठ रमरिण मे माहरे, तू हिज जीवन प्रारण ॥४॥ १४५ 'दाल -१० राग गोडी. चेतन चेत करी, पहनी जाति श्रेणिक घर आया पछे रे, काय पडी मन भ्रति । दिन दिन एक कामरिण तजे रे, व्रत लेवानी खतोरे रे ॥१॥ वयरागी थयो, जामरण जायो वीरो रे । भरें तिरण नीरो रे ॥२॥ ० ॥ उदास । || ४ || वे० ते मुझ सांभरथो, नयण सांत भलो जो सासरो रे, तो पीहर आवे विरण बघव पीहर किसो रे, नेह रहित जिम वीर विहरणी बहिनडी रे, निस दिन रहे प्रीउ हटकी किरण आगले रे, काढे मन नीसासो रे उभारे पीहर तरणं रे, गज न सकै कोय । सकज वीर नी बहिनडो रे, दिन दिन नवली होयो रे ||५|| वे कुरण कहिस्ये मुझ बहिनडी रे, केहने वार पर्व कुरण भूकस्यै रे, मुझ ने नव नव चीरो रे || ६ ||० कलि अजरामर तू हुजेरे, मुझ पूर्वे जगी सं 1 किरण आगलि कभी रही रे, देइसु इम प्रासीसो रे ||७|| कहस्यु वीर । चीति । भीतो रे || ३ || वे०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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