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________________ १४२ जिनराजसूरि-कृति-कुसमांजलि माखण जिम तनू ताहरो, परसेवै परघलियो रे । ते वेला स्यु बीसों, व्रत लेवा हलफलीयो रे । वा० कुरण अतुली बल सचरै, सनमुग्व गग प्रवाह रे । तिम सुरगिरि नै तोलिवा, कवरण पुरुप उमाहै रे । १०वा० मयण तणे दाते करी, लोह चिरगा कुरण चावे रे । सिला अलूणी चाटता, स्वाद कहो कुण पावै रै ॥११शावा. मन वछित सुर पूरवे, तिण देणो छ पूरो रे। स्यु” सजम ले साधिस्यो, स्यु छ इहा अधूरो रे ॥१॥वा० दुखिया तो दुख भाजिवा, सजम सु मन लावा रे। पिण सुखिया सुख छोडिस्यइ, ते पडिम्यइ पछतावइ र ॥१३वा० परभवनी आस्या धरी, जे आया सुख छोडे रे । ते तो कडनी मूकि नै, पास्या ऊपरि दौर्ड र ॥१४॥बा० ते रामति किम कीजीयै जिय रामति घर जावे रे। महल पधारो नान्हडा, उठि वझर दुख पावै रे || शाबा० दुख ल्यै कवरण उदीरने, कुण घर माडी ढावै र। स्यो पोतांना पग भरणी, कोई कुहाडी बावै रे ॥१६||बा० मोह विलूचा मानवी, ओछो अधिको भासै रे । ए ए दुरजय मोहनी, श्री जिनराज प्रकासै रे ॥१७॥बा० ॥ दूहा ॥ कहयो कुमर माने नही, कही विविध परि वात । मीठे वचने तेडि नै, मात कहै ए वात ॥१॥ साताँ ही जो नवि रहै, तो पहिली करि अभ्यास । पावडीए चढता थका, पहुचीज आवास ॥२॥ काज विचारी जे करे, रहैं तियारी लाज ।। अति उच्छक उतावला, ते विरणसाड काज ॥३॥ इम अनुमति उतावली, देता न वहै जीह । जो माता करि लेखवो, तो पडखो दस दीह ||
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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