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________________ १४० जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि साघु वचन सवि सरदही, इहा किरण मीन न मेप । आवी माता ने कहै, इण परि वचन विशेष ||४|| ढाल-१५ राग-खाभइची मानव भव लहि दोहिलो रे, तो पाछलि अलवि गमायो रे । सफल करू हिव मात जी रे, तो हताहरो जायो रे॥ मोरी मात जी अनुमति दयो सजम अादरूँ रे । व्रत पालि ने भव जलनिधि हु तरूं रे ॥२॥ मो०॥ जे मारग जाणे नही रे, ते तो भूलै न्यायइ रे । मारग जाण्या ही पर्छ रे, कहि कुरण उवटि जायइ रे ॥३॥मो० जग मे को केहनउ नही रे, जोवो हिये विमासी रे । परभव जाता जीव ने रे, साथ न कोई आसी रे ॥४॥मो० मुह मीठा प्रावी मिल्या रे, मुझ नै पाच सखाई रे। ते धन लूट माहरो रे, आज खबरि मैं पाई रे ॥शामो० जेहनो गायो गावतो रे, जेह सुं रहतो भीनो रे । ते प्रधान माहे थई रे, करै खराव खजीनो रे ॥६॥मो. पग भरि साथ खिसे नही रे, फोकट मिलि मिलि पोसे रे। बाल सखाई नो टल्यो रे, मुभनइ आज भरोसो रे ॥७ामो० हिव हु देखो तेहने रे, कवरण कुलीक लगावू रे । खरच न देउ गाठ को रे, विमरणो काम करावु रे ||मो० मिलण न देस्यु मत्रवी रे, सो घर भेद प्रकाशै रे । सयण अछ वीस जे रे, ते नावण द्यपास रे मो० पूरो लेखो मागिस्यु रे, पहिले दिन थी लेई रे । खाधो विमणो काढिस्यु रे, मुहडे माटी देई रे॥१॥मो० च्यार अछ जे चोगुणा रे, इण घरना रखवाला रे। साधो माल नही दीयै रे, होइ रहया मतवाला रे ॥१शामो ए सीखामरिण तेहन रे, नाणु इण घर माहे रे । जोतई पैसै छेवकै रे, तो काढु गल साहे रे ||१२सामो० ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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