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________________ शालिभद्र धन्ना चौपाई १२६ किण दिस ऊगे प्राथमे, जाग राति न दीह । जउ तिल कूड इहाँ अछ, तो हु काढू लीह ॥३॥ किम तेड़ावो नान्हडो, लाछि लील भरतार । - राज भवरण लग आवता, थास्य कोस हजार ॥४॥ राज पधारो आगणे, मत को जाणो पाड । जो छोरू करि जारणस्यो, तो पूरवस्यो लाड ॥॥ ढाल राग-सिंधुडों, चीतोडी राजारे मेवाडी राजा रे,एजाति मुझ लाज वधारो रे, तो राज पधारो रे, मत वात विचारो डावी जीमणी रे । आसगा पाखे रे, सह कोनी साखै रे, इम कोइ न भाख राख कडि घणी रे ॥१॥ मगधेश विमासै रे, मत्रोसर भास रे, तुझ पास अवास, तू चली आगले रे। साहिव मतवाला रे, हुइ तो रढाला रे, प्रधान वडाला, वालइ तिम वसं रे ॥२॥ हता जे नेर्ड रे, ते साथै तेर्ट रे, - वीजा ने कड' केहै वेगा आ पडो रे । देस्यै 'अोलभो रे, परिण वलि थभो रे, सह को नै अचभो, देखण नो बडौ रे ॥३॥ मानी मछराला रे, वारू वीगताला रे, ठकुराला छउगाला सहु आवें वहया रे। वागे तन लागे रे, केसरीये पागे रे, वलि लीधे वागे प्रावि ऊभा रहथा रे ||४|| वधि चल्यो वधाऊ रे, उलगायो साउ रे, । द्यइ खबरि अगाउ, आव्यो अम्ह धरणीरे । पोषी पकवाने रे, दीजे अनुमाने रे, कोई गिरण न ग्यानै रे, तास वधामणी रे ॥५॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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