SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शालिभद्र बन्ना चौपाई परधन लेवा जे पागला, पर उपगारी जे आगला । कर उपर करवा ने हठी, न्यायें लाछि करें एकठी ||५|| सालानी जे द्य को गालि, तो हरखित हुवे अरथ निहालि । विढता कहे अकरमी कोई, कहियं विर होस्यइ दिन सोह || ६ || माता खोज गयो जो कहै, तो आसीस रुखो सरद है । रमता पिग जे पासा सार, अलिवि न आखे सारी मार || सूधी विराज तिसी परि करें, परदेसी धन धन उचरं । सकज पूत पीता अनुसार, हिवदुरण सीसे गोडा भरे ||८|| परव दिवस पोषध अनुसरे, अवसर बारह व्रत परिण धरे । परभव हुती जे थरहरे, वारू लाक से इस परं ॥६॥ धना नाम नारि अनाथ, सगम बेटो लेई साथ । घर नी आथि गाउ चली, सालि गाम थी ते ऊचली ॥ १०॥ जाजगृह श्रावी न रहे, पर घर काम करी निरवहै । सुख दुख वात न पूछे कोड, प्राथि पर्खे किम आदर होई ॥। ११ ॥ सगम बाहिर सारो दोस, वाछरुया चार निसदीस । चाराही श्रावं घर दीठ, पेट भराई थायै नीठ ॥ १२ ॥ सगम किरण ही परब विशेषि, खीर जीमता बालक देखि । पायस भोजन मनसा थई, मार्गे माता पास जई || १३ | घरनी परठ न छोरू लहै, दुख भर सजल नयन इम कहै । 1 पूत न पहुचे कूकस भात, तो सी खीर खाडनी वात || १४ || च्यार चतुर पाडोसा नार, श्रावी ने पूछे इण वार । स्यूं दीसै भ्रामरण दूमणी, माडी बात कही सुत तरणी ॥ १५ ॥ एकरण दूध श्रमामो दीयो, घृत नो वीडो बीजी लीयो । तीजी आप बूरा खाड, चोथी आप सालि खड || १६ || ॥ दूहा || हिव नीपजता खीर ने, वारन लागी काय कारण सकल मिल्या पछै कारिज सिद्ध ज थाय ॥ १ ॥ । 2 १२१
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy