SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शालिभद्र चन्ना चौपाई सासरण नायक समरीयं वर्द्धमान जिरणचंद । लिय विघन दूरे हरे, आप परमानंद ||१|| सहु को जिनवर सारिखा, परिण तीरथ धरणीय विशेषि । परणीने ते गोइये, लोकनीत संपेखि ||२|| 1 दान शील तप भावना, शिवपुर मारग च्यार । सरिखा छै तो पण इहाँ, दान तणो अधिकार ||३|| 'सालिभद्र' सुख सपदा, पामे दान पसाइ । तास चरित वखारणतां, पातिग दूर पुलाइ ॥४॥ तास प्रसंगे जे थई, 'धन्ना' नी परिण वात । सावधान थई सांभलो, मत करज्यो व्याघात ॥५॥ ढाल १ चौपाई नी. मगध देश श्ररिणक भूपाल, पते न्योय करे चोसाल । भाव भेद सुधा सरदहै, जिरणवर प्रारण अखंडित वहै ॥१॥ नित नवला करती खेलरणा, मानीती राणी चेला | कोइ न लोप तेही कार, मंत्रीसर छइ ग्रभयकुमार ॥२॥ वारे पाड़ नगरी वसे, राजगृही अलका ने हसे । सुखिया लोक वर्षं सहुकोइ, तो पग पग माँर्ड छे जोइ ॥ ३॥ रसना गुण लेवा चलवल े, श्रवगुरण वेला मूल न वलें । परगुरण देखरण नयरण हजार, सयम दूषरण देखरण वार ||४|| परघन लेवा जे पांगला, पर उपकारी जे आगला । कर उपर करवा ने हठी, न्याय लाछ करें एकठी ||५|| सालानी जे दध े को गालि, तो हरखित हुवे रथ निहालि । विढतां कहै करमी कोई, कहियै विर होस्यइ दिन सोइ ॥ ६ ॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy