SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शील बत्तीसी ११५ ब्रह्मचारि चूडामणि मुनिवर, न पडथउ नारि पासि जी ॥सी०॥२१॥ वलकलचोरि वसइ वन माहे, फल फूले आहार जी। ते पिण गणिका केडइ धावइ, आवइ नयरि मझारि जी ।।२२।।सी०॥ सीलवती भूपति मंत्रीसर, नगर सेठ कोटवाल जी। च्यारे पेटो माहे राख्या, पाल्य सील रसाल जी ॥२३सी०॥ बार हजार वरस छट्ट कीधा, वेयावच्च प्रधान जी। नदिषेण संजम फल हारथउ,कीधउ नारि निदान जी॥२४सी भिडतउ भीम असुर सु भूखउ, आवइ माता पास जी। सील प्रभावइ कता वचने, कादम अमृत ग्रास जी॥२५सी० केस फरसि नीयारणउ कीघउ, पाली व्रत चिर काल जी। ते सभूति बारमउ चक्रवर्ति,जाइ सत्तम पाताल जी ॥२६सी० वेश्या संग तजी व्रत आदरि, नाचत चतुर सुजाण जी। ते आषाढभूति सवेगी, पामइ केवल ज्ञान जी ॥२७॥सी०॥ अरध मडित निज नारी छडी, साधु भगति परिणाम जो। ते भवदेव नागिला वचने,आवइ ठामो ठाम जी ॥२८सी०॥ पटराणी वचने नवि खलियउ, राजा नयन निहाल जी। ततखिरण वकचूल नइ आपइ, राज काज सभालि जी ॥२६॥सी०॥ आद्कुमार रहयड़ गृहवासइ, छंडी व्रत नउ भार जी। जीरण तृण जिम तेहिज परिहरि, लाधउ भवनउ पार जी ॥३०॥सी०॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy