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________________ जिनराजसूरि- कृति कुसुमांजत्ति उडी नइ जाई मिलु, पूरु मन नी आस || ४ ||मन० ||ध ०|| एम वचन राजा सुणी, मन मांहि पडयउ संदेह ||म० || कुसती रइ मन कुण वसइ, जे सु निवड़ सनेह ||मन॥५॥ ० गरभवती एकाकिनी, मूकी अटवी मांहि ||म० ॥ कापी आण्या वहरखा, साथइ लागी वांहि ॥ मन० || ६ ||०|| सील प्रभावि सती तणा, नव पल्लव कर होइ ॥ म०॥ सील वड़उ भूषण कहयउ, सील समउ नहि कोइ ||मन०||७||०|| ८० ते नामांकित वहरखा देखी सख नरिद | म० । पुत्र सहित निज कामिनी, आणी परमाणंद || मन० ॥८॥०॥ सुजस थयउ महि मंडलइ, साचउ सील रतन्न || मन० ॥ 'राजसमुद्र' गुण 'गावतां', लोक कहइ धन धन्न ॥ मन० ॥६॥० ॥ श्री मयणरेहा सत्ती गीतम् लघु वांधव जुगवाहु नड रे हा, जीवनप्रारण आधार ॥ मयणरेहा सती ॥ मणिरथ रूपइ रजियइ रे हा, विरूआ विषय विकार ॥०॥१॥ मयणरेहा राख्यउ सील रतन्न, कीधा कौड़ि जतन्न, तिण कारण धन धन्न ॥ प्रा० ॥ पापी मणिरथ निसि भरइ रे हां, मूक्यउ खडग प्रहार ||म० ॥ पिउ पासइ ऊभी रही रे हा, 'देही शरण' च्यारि रे ॥ म०॥२॥ सील रतन राखण भणी रे हा, ते पहुंती वन मांहि ॥ ० ॥ पुत्र रतन जायउ तिहां रे हां, जल गज नाखी साहि ||म० ||३||
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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