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श्री शालिभद्र गीतम्
नयण न देख नान्हडउ' जी, नंदण नयणाण द ।।६।।म०॥ . वीर कहइ भद्रा भणी जी, बइठी परखद बार। रिष जी अणसण आदरयो जी, 'सालिभद्र' सुकुमार ॥७॥म० शोकातुर धरणी ढलइ जी, कठिन विरह न खमाइ । जाणइ पुत्र विजोगणी जी, जे" दुख कवि न कहाइ॥८॥म०॥ छाती लागी फाटिवा जी, नयणे नीर प्रवाह । विरण जीवन जे जीवियइ जी,ते जीव्यउ स्या माहि ।।हाम०।। पेखि सिलापट ऊपरइ जी, पउढयउ पुत्र रतन्न । अविचल जोडि न वीछडइ जी, पास धनउ धन धन्न ।१०म० इतला दिन हजाणती जी, मिलिस्यइ वार विच्यार। हिव मुझ मेलउ दोहिलउ जी, जीवन प्राण आधार ॥११॥ धरि आवी पाछा वल्या जी, जगम सुरतरु जेम । ए दुख वीसरस्यइ नही जी, हिव कह कीजइ केम ॥१२॥म० हरख न दीघउ हालिरउ जी, वहूअन पाडी पाइ। ते वांझ णि होइ छुटिस्यइ जी, हु किम गान गिणाइ ।१३म० तुझ सम अवर न वालहउ जी, भावइ जाण म जाणि । साल तणी परि सालस्यइ जी, ए मुझ आहीठाण ॥१४॥म०॥ वछ ए मेलउ छेहलउ* जी, हिव मुझ केही सीख । नयण निहालउ नान्हडा जी, जिम पाछी दय वीख ।।१५म०। देखी आमणदूमणी जी मोह वसइ मुनिराज । नयणि न निरखी माइडी जी, सारथा आतम काज ॥१६म०।।
३. पात्र लूहरण दीसइ नही जी ४. सुभद्रा नइ कहइ ५- ते ६- धीरज जीव खमइ नही जी. ७- दोहिलउ जी - निहाली, दीठी