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________________ भणशाली थिरु गीतम ६७ भणशाली थिरु गीतम् मंघवो तू कलियुगि सुरतरु अवतरय उ रे, आठ पहर घरि दइ दइ कार रे । तू तउ राका केरउ मालवउ रे, दुनिया रउ दुख भंजण हार रे ॥१॥सं०॥ खाटो तउ सलहीजइ ताहरी रे,वाटी जिण सारइससारि रे। कृपणा जिम माटी देई करी रे, तउ तउ दाटी नही लिगारि रे ॥२।।स०॥ लोद्रपुरइ, प्रासाद करावता रे, विधि सुपारसनाथ प्रतीठ रे । करण कनक दातार सूणीजतउ रे, ते तउ परतिख नयणे दीठ रे ॥३॥सं०॥ जिणवर नइ कुडल सिरि सेहरउ रे, भाल तिलक वलि नवसर हार रे । श्रीवछ नइ श्रीफल गल वाललउ रे, रतना जडित सोवन मइ सार रे ॥४॥सं०॥ आभरण चढावइ सामठा रे,तो विणु कुण खोटइ ससार रे। तइ चाढी नवली नव देहरइ रे, मुखमल नी धज एकणि वार रे ॥५॥सं०।। 'सघ चलावउ 'जेसलमेर' थी रे,भेटी नाभि नरिद मल्हार रे। 'पु डरगिरि' निज पगले फरसतइ रे, तइ तउ परत कीयउ ससार रे॥६॥स०॥ नगर नगर वरसतइ लाइणे रे, देतइ नव नवारू चीर रे ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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