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________________ नव पद स्तवन 'राजसमुद्र' प्रयु तिहारइ भजन विणु, यू ही जनम गमायउ॥३॥क०॥ नवपद स्तवन ॥ दूहा ।। दस दृष्टांते दोहिलउ, लहि मानव अवतार। 'सिद्धचक्र' आराहियइ, लह रियइ ससार ॥१॥ जिणिपरि जिणवर उइसई, आर्गाल परषद बार। तवन बध तिण परि कह, भवियण जन हितकार ॥२॥ ॥ ढाल १ ॥ चवदह पूरब सार, मत्र भण्यउ नवकार । पहिलइ पद अरिहत, समरीजइ मन खति ॥१॥ वीजइ पद मन दीइ, सिव गय सिद्ध लहीजइ । आचारिज पद त्रीजइ, आदर सु आराहीजइ ।।२।। चउथइ पदि चरचीजइ, सिरि उवझाय जपीजइ । सुधा साधु महत, पचम पद विलसत ॥३॥ दसण नाण चरित्त, चउथउ तप सुपवित्त । नवपद जगि जयवंता, भासइ इम भगवंता ॥४॥ ॥ ढाल २॥ आसोज धवल सत्तमि दिवसइ,जिणवर पडिमा थापी हरसइ । आगलि सिधचउक सुथिर माडी, . मन हुती मद मछर छांडी ॥१॥ गरु मुख आबिलं तप पचखोजइ,दिन प्रति इक पद आराहीजइ। पणवक्खर मायो बीज धारइ, नवपद समरीजइ मधुर सुरइ ॥२॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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