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________________ गुणस्थान गर्भित पार्श्वनाथ स्तवन ढाल २ भव्य तराइ परिपाक एहनी. ओर इस वीस बध पयडी तणउ सम्म मीस मोहनि विनाए । जिण परिणाम विशेष पुज रचइ तिग ते पुग्गल मिच्छातना ए | ६ | गुणठाणइ मिच्छत्ति सतर अधिक सत जिण आहारग दुग पखइ ए । जे भी अनुक्रम एह सुध समकित, ५५ धर अप्रमत्त संजति कषइ ए ॥ ७॥ सासण इग सय एग अणुपुव्वी गइ आउ नरग तिग ए भण्यउ ए तिम इग बिति चउरिदि थावर, अपजत साधारण सुखम गण्यउ ए ॥ ८॥ हुडा तव छेवट्टि मिछ न पुरक ए सोल बंधइ नही ए । एह पर्याड नउ हेतु मिछ नही इहा तिण नवि बंधइ ए सही ए ॥ 8 मोसि चहुर्त्तार बंध तिग तिरिया तणउ थीणघी तिग कुख गई ए । दुभग दुसर ना देय पढमंतिम हुण चउ चउ संघणा गई ए । १० नीय गोय उज्जोय इछे वेय तिम च्यार कषाय पढम जुया ए । एपणवीस ना हेतु अण कोहाईय तेषा उर्वास मिग हुया ए । ११ न मरइ इछ कयावि तिणि सुरनर आऊरि, इम सगवीस पर्याड़ टलइ ए ।। हिम चथइ गुण ठाणि सतहत्तर, भणी सुरनर आऊ जिण मिलइ ए ॥ १२ ॥ ढाल सतसठ्ठि पड़ि नंउ देसइ बंध वखाण नर तिग आइम संघयण उरल दुग जाण जिण इण गुणठाणइ सुर गइ बंधइ एह
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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