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________________ श्री चितामणि पार्श्वनाथ गीतम् श्री चिन्तामणि पाश्वनाथ गीतम् नील कमल दल सांउली रे लाल, मूरति सबही सुहाइ मन मान्या रे । कंचन की अंगी वणी रे लाल, या छबिवरणी न जाइ मन ।। मेरइ मन तही वसइ रेलाल श्री चितामणि पास ॥म०॥ साचउ विरुद अपनउ करउ रे लाल, पूरि हमारी आस मन० ॥२॥मेol सीस मुगट रतने जड्यो रे लाल उर मोतिन कउ हार भन० कुडल की सोभा कहुरे लाल, रवि शशि कई अणुहारि मन० ॥३॥मे०॥ दसन ज्योति हीरा जडया रे लाल, अधर कि लाल प्रवाल मन० । चंपकली सी नासिका रे लाल, भाल तिलक सुविसाल भन० ॥४ामे०।। सोभा सायर वोचि मइरेलाल, झोल रहयउ मन मोन मन० । तइ कछु कीनी मोहनी रे लाल, नयन भए लयलीन मन• ॥५॥मे०॥ दो कर जोड़ि वीनवुरे लाल, देहु दरसन इक वार मन० । जउ अपणउ करि जाणिहउ रे लाल, - तउ करउ कउण विचार मन० ॥६॥मे०॥ मन सुधि सेवा साचवुरे लाल, भाव भगति भरपूर मन० । परतखि परता पूरवइ रे लाल, आपण होइ हजूर मन० ॥७ामे०॥ साचउ साहिब सेवतां रे लाल सीझइ वंछित काज मन० ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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