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जल रहित बूटी, ध्वज विचाला त्रुटी ।। घृत रहित भोजन, संज्ञा रहित मन ॥ तेल रहित मज्जन, स्नेह रहित सज्जन ॥ मनुष्य रहित घर, विनान रहित वर ।। चतुराई रहित कला, पुरुप रहित महिला || कराठ रहिह्न गान, सोहाग विण मान ।।
आभरण रहित कान, वर विना जान ।। वृक्ष विना पान, जलवा रहित धान ।। 'वला रहित छान, कलावत रहित तान || भाग रहित भागवान, पात्र रहित दान ।। वेग रहित घोडड, गृहस्थ माथइ मोडउ॥ पाठरउ छेलड, दुर्विनीत चेल। तेन रहित पारीसड, नेह जिसउ दारीसउ ॥ प्रसाद रहित छाजा, नीसाण रहित वाजा ।। वृत रहित खाना, प्रताप रहित राजा ।। पासा रहित तारी, पुत्र रहित नारी ।। क्रिया रहित जती, सत्व रहित सती ।। धन रहित गेही, तिम श्रीजिन धर्म रहित देही ।। ॥ इति रहित वर्णनम् ।। कु०
(११८) अनावश्यक (१) मुनिराभरणेन किं कर ति, मर्कटो नालिकेरेण किं करोति । काको रत्नमालया' किं करोति, मत्स्याटको जलच्छादन केन किं करोति । वानरी हारवल्याकि करोति, विधवा स्त्री ककणेन कि करोति । वणिग खड्गेन किं करोति, दिगबरः पट्टकूलेन' किं करोति । असती शीलेन किं करोति, व्याधा जीवटयया कि करोति । तथा निर्भाग्य जीवः सदुपदेशेन किं करोति ।। १७ स. १
(११६) अनावश्यक (२) शुद्ध ऋषीश्वर अाभरण ने स्यु कर, मर्कट नालेर ने स्यु करें ।
१ रत्नेन • मुताफलेन ३ दुकृलेन