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________________ ____ कहीं कहीं युद्ध में भाटों द्वारा वीरों को उत्साहित करने का भी वर्णन है। द्वितीय युद्धवर्णन सबसे विस्तृत है और उसमें संघर्ष का जो चित्रण है वह काल्पनिक प्रतीत नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि मृत्यु के ताण्डवनृत्य को अपने सामने देखकर ही लेखक ने लेखनी उठाई हो । सेना के न्यूह बनाकर खडे होने के बाद युद्ध के बाजे बजे और रण प्रारंभ हुआ। धनुष से निकलकर तीर मस्तकों से जा टकराए । खाडे ऐसे चल रहे थे मानो वर्षा की झड़ी लगी हुई हो। वीर एक दूसरे को काटने लगे। कई वीर सिर कट कर गिर जाने पर भी लड़ते रहे। फइयों की तलवारें टूट गई। कायर लोग भागने लगे। इस प्रकार के युद्ध को देखकर वीर युद्धोन्माद से भर गए पर फायर फॉपने लगे भाजेवा लागा धनुदंड। जाएवा लागा शिरः खंड । पड़ेवा लागी खाडा तणी झड़। बजेवा लागी सुत्रट तणी काटकड़ । नाचेवा लागा भड़ फवंध । फोटिवा लागा धन विंध । त्रुटेवा लागा खड्गफल । नासेवा लागा फायर दल। इसइ सग्रामि सुभट गाजह । फायर थर थर धूनह । कहीं कहीं हाथी, घोड़ों और रयों की तैयारी और सृष्टि पर पड़नेवाले उनके प्रभाव की व्यंजना वन्यात्मक ढंग से की गई है रथ थडहडइ, रण काहल बडबडइ । गजेंद्र गडगडइ, घोडे पाखर पडइ । पृथिवी चलचलइ, समुन्द्र झलझलइ । शेष सलसलह, सूर सामला हलफलइ । यद्यपि युद्धवर्णनों से पूर्व 'सभा शृगार' में शस्त्रवर्णन अलग से दिए हुए हैं पर इन युद्धवर्णनों से भी अनेक प्रकार के शस्त्रों का वर्णन किया गया है बो लड़ाई के समय काम में लाएं जाते थे । यदि किसी युद्धवर्णन का श्राधार
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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