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________________ (२५६) चचल वित्तं अतएव सुपोने नियोज्यं । यतः-- उत्तम पत्त साहू मझिम पत्तं च साचया भणिया । अविरय सम्म दिठी जहन्न पत्त मुणेयव्वं ॥१॥ व्याजेस्या द्विगुणं वित्त व्यवसाये चतुगुणं । क्षेत्रे शत गुणं प्रोक्तं, पात्रेनंत गुण पुनः ॥ २ ॥६२ जो० । (७६) चंचल वाक्य जेहवउ चंचल कुजर नउ कान, पीपल नउ पान । सध्यानउ वान, दुहागणनउ मान॥ विपहर नी छाया, रावणनी माया ।। गोदतीनी वाट माटीनउ घाट ॥ रावनउ घेउ, राकनउ भउ ।। बादतनी छाह, कापुरुपनी बाह ।। आढनउ तूर, पर्वताश्रिनदीनउ पूर ।। वैद्यनउ पंडीगणउ, सूपडा नउँ ठीगणउ ॥ इन्द्रनाल नउ पेषणउ, स्वाननउ घीवणउ ।। छालीनउ ऊम, स्त्रोनउ गूझ ।। दासीनउ स्नेह, ऊन्हालू मेह ।। ठारनउ बेह, धूलिनी वेह वेकीय देह, ॥ जेहवउ चचल बीजलीनउ ' मधुबिंदुश्रा नउ टवकर, झबकउ ॥ मोईनउ हेज, जेहवी खजूया नउ तेज . पाणीतणौ तरंग, पतंगनउ रंग ॥ माकडनउ विषाद, । रामनउ प्रसाद ।। जिसी चंचल स्त्रीनीजाति, उन्हालू राति ॥ त्रिणानी आगि, दुर्जननउ रोग | जिसउ चंचल मन निसउ चंचल परेवन। जेहवउ चंचल तुरंगम, तेहवउ चंचल धोर संसारनउँ सगम । इति चंचल वाक्यानि।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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