SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ ) सिंह गजयोः, गो व्याघ्रयोः काक घूकयोः पंडित सुर्खयोः । सुजन दुर्जनयोः, विप्र वाचंयमयोः । सर्प नकुलयोः, महिय तुरगयोः ।। ३३ । जो०+ (६२ ) सहज वैर (२) जलने अगनि प्रीति, देव दैत्य ने प्रीति । मुषक मानार ने प्रीति, सिंह गजने प्रीति, गो व्याघ्रने प्रीति पंडित मूर्खनें प्रीति सजन दुर्ननने प्रीति || सर्प नोलने प्रीति, सौक सौकनें प्रीति । महिप तुरंगने प्रीति ॥ इत्यादिक अमेल नाणवो । पू० (६३) । गुण के साथ दोष भी रहता है । जिहा गुरुवा' तिहा गाजणउ । जिहा कुलीन तिहां खापण्डं। जिहां भाणउ तिहा भउ। जिहा झूझ तिहा खउ। निहा चोरो तिहा दोरी। निहा चडणं, तिहा पडण । जिहा जन्म तिहां मरणु जिहां रूलण तिहा भरण । जिहां रंग तिहां विरग। जिहा संयोग, तिहा वियोग । जिहा लाइउ तिहा छेहउ । जिहां रूसणउ, तिहा तूसणउं ॥ २८ । जो० + + पतिव्रता म्वैरण्यो.' पाठ पु० प्रति में अधिक है १. गुन्तण। • भाणौति । 3. भय । + जिस्, वास तिन्यु अभ्यास । निसी दीख तिसी बीस । नित्यु श्राहार तिन्यू ढकार । जित्यु वावीइ तिस्सु लूणी । जिस्यु पुण्य पाप कीजइ तित्यू भोगवीड । यह पाठ पु० प्रति में अधिक है।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy