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( २३५) यदि बृहस्पतिर्मतिहीनस्तदा को मति दास्यति । यदि पृथ्वी कंपते तदा क. स्तमः। यदि नभः स्फुटति तदा की हग रेहण । यदि पुत्री भक्ति न विधास्यति तटा को विधास्यति । यदि शिष्यो विनय न करिष्यति तटा कः कर्ता । यदि सत्पुरुप उपकार रहितस्तदा कः शिष्या (क्षा) दास्यति ||३४|| जो
(२८) इनकी त्रुटि इनसे पूरी नहीं हो सकती
द्राक्षा तणी' आकाक्षा, किसिउ महूडे फीटइ । शर्करानी श्रद्धा किं गुलि पूजा । अमृत काजि किं काजी पीजइ । श्रावा तणउ डोहलउ कि प्रालीए पूजइ । कस्तूरी वान' किं काजलि कीजइ । इद्र नीलमणि काजि कि काचु लीजह । वल्लभ माणुस तणो उमाह किसिइ अनेरइ पूजइ ।
( ११६ जो०)
(२६ ) अंत (सीमा)
कलशात प्रासाद, गजान्त लक्ष्मी, ध्वजात धर्म । नरकात राज्य, गोरसात भोज्य । घधनात व्यापार, हारात' शृङ्गार । व्यलीकात, स्नेह, कलहात गेह । क्षय रोगान्त देह, शरत्कालात मेह ॥२३॥ जो.
(१) नी • नू काज ३ नइ (पु० प्रति) १-हीरात "वियोगात छेह" इत्यादि जाणनो।
प्रत्यतइ मे पाठ अधिक मिलता है।