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________________ (१६ ) अंगो पाग करी प्रौढ, हुई यौवनाधिरूढ । • सर्व शास्त्र करी परिकलितु, विज्ञान न इ विषय अश्वलितु | सर्व लक्षणो पेतु, कुल हई केतु। - विविध भोग तणी प्राप्ति, अनि भोगविवानी नाणइ युक्ति । शालिभद्र नी परि, विविध स्त्री घरि । पालन सूभव्या गजेन्द्र मट झिरइ, तुरगम हेखारव करइ । विबुध जन बइठा शास्त्र वाचई, अागलि त्रिवेली पात्र नाचई। ती-ता गुण करी प्रबल, नागवल्लो दल । ते अश्रान्त बीडा समाणीई, ऊग्या प्राथम्या अतक न जाणोइ । स्वजन तिडइव्या, रहइ निष्पृहा । सप्त भूमिक धवल गृह, ऊपरी स्वर्णमय कलश झलहलड, वारि बटिजन कलकलइ , देवदूष्य व पहिरीडं । चढन काष्ट विहरीइ । दुर्जन ना नामइ प्रक्ष, नीपजई चतुर्मुख गवाक्ष, सारि पाने रमीइं । इम दिन नीगमीइ, सूबा मालही हस मयूर लही तिहनई विनोद लागीइ । जइ माग्यउ लाभइ, तउ वीतराग कन्हलि इ स सौख्य मागीइ ॥ ३० ॥ जै० (४२) पुण्य प्रकार (३) नाणु, भाणु, खाणु, पीणु, कयाणु, वसाणु, दोझाणु, वीयाणु, इत्यादिक पुन्यना प्रकार छे। वि० (४३) पूर्वभव के पुण्य से प्राप्ति वेटा, वेटी, बइयर, बल, बुद्धि, सोना, रुपा, मणी, माणिक, मोती, मुंगीया, मान, मही, मयगल, मोटाई, मर्यादा, हर्ष, कुटत्र, परिवार, स्वजन, सम्बन्धी, संपटा, मोहणवेल, चित्रावेल, कामकुभ, कल्पवृक्ष, कामधेनु, दक्षिणावर्त शंख, पारसपाषाण, एतला वाना पूर्वला भवनि पुन्याई होई तिवारे पामीइं ।।. (४४) पुण्य विना नहीं मिले माता, पिता श्राड, काका, बाबा, मामा, मामी, भाई, भत्रीजा,भोनाई, भाडर, मित्र, कलत्र, पुत्र, पुत्री, पौत्र, प्रपौत्र, भाणेज, पीत्राई, पडपीतराई, सगा सणीजा, नम्वन्धि, कुटब, परिवार, नफर, चाकर ।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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