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________________ (१६०) परदार संग लगी इहलोक परलोक चूकिया , एक नरक ढकियाइ' ||+ पु. अ. (२६) तप वर्णन तपु, साक्षात् परम जपु । अष्ट कर्म क्षयंकर, महा शोक हरु । मुक्ति श्री वशि करिवा परम मंत्रु, मदन गढ गाजिया मगर वइ यत्र । मुनि जन शृंगार, अरिष्ट तर कुठार । इस्यउ तप ।। १५ ।। जै० (२७) अथ तप त्रिभुवन वशीकरणु मनु, कन्दर्प दर्प ग्रहोच्चाटन परम यंत्र । लोभार्णव शोषण बड़वानल, मोक्ष श्री कमल । माया वल्ली कुठारु, दुरितोपताप तस्कर, धर्म महाराज नगर, मानाचल चूलिका वज्र धातु, केवलि श्री कान्तु, जु वहह तपु, ते (घ) लहइ संसारि संतापु ।। ६० ।। ० (२८) भावना मुक्ति श्री प्रति सगलाइ भावे जाणे हाव भावना । स्यूं घणइ वादि, भानु हुइ तउ स्या जईय प्रासादि । भावु मूलगउ योगु, भावु लगी वइठा पुण्य नु समायोगु । ध्यान ध्येय धारणा, भावु लगी सगलाइ कारणा। एवं विध भाव ॥ १६ ।। जै० १ एक नि केवल नरक दुख देखइ+एक अन्य प्रति में-"खढत्वमि द्रिव्य० मव स्वहरण बघ."-पाठ अधिक मिलता है।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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