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________________ ( १८० ) ( ८ ) केवलज्ञान विशेष अतिशय निधान, सक्ल ज्ञान' प्रधान । मोहाधकार विच्छेदन भानु, त्रोटिता शेष कर्म सतानु | त्रिभुवन जन सकल संदेह छेदक, श्रच्छेद्यभेद्य प्राणी-गण हृदय मेदक । अनतानत विज्ञान, इसिउ ऊपनउ केवल ज्ञान ३ | ३ || जो० ( ६ ) समवसरण ( १ ) उत्पन्न दिव्य विमल केवल ज्ञानावलोकित सकल लोकालोक स्वरूप । सुवर्ण सिहासन छात्र चामरादि श्र महा प्रातिहार्य्यं शोभमान समानरूप देवाधिदेव, विहित सुरासुर सेव । त्रिभुवनैक नायक, सकल सौख्य दायक । त्रिभुवन जन नयना प्यायक, निर्जित पंच सायक । चउत्रीस ३४ अतिशय सहित, पात्रीत ३५ वचनातिशय परिकलित । चउस ि६४ इन्द्र सहित, श्रष्टादश १८ टोष रहित । घात्य कर्म चतुष्टय मुक्त, देवता कोटि युक्त । यदा कालि नगर समीपि श्रवइ, तिवारइ आपणइ भावइ । चतुर्विध देव निकाय समोसरण नीपजावइ । तिहा पहिलू देव निर्मित, सवर्त्तक वायु विस्तरइ | तृण काष्ट, कचवर अपहरह, आकाश मेह पटल पसरइ । सुगधोदक वृष्टि करइ, फूल पगर भरइ | योजन एक प्रमाण भूमिका, विरचित अगर धूमिका । मणि रत्न सुवर्ण सिउं साधी, गुरूड रत्नमय पीठ बाधी । ऊपरि जानु प्रमाण पच वर्णं कुसुम वरसई, चिटिसि दिव्य परिमल विलसइ । उदार रत्न, १ सुवर्ण २ रुप्य ३ मय त्रिणि प्रकार 1 मणि, रत्न, हेम मय कोसीसे करी सदाकार, समस्त विस्व माँहि सार । पुण्यावतार, तेजि करी पूस्कार | च्यारि (४) प्रतोलीद्वार, जिहा देवज प्रतीहार | तिहा बिंहु पासे उच्चैस्तर सुवर्णमय स्तंभ, ऊपरि मणिमय कुभ | १ किवारइ • लगारेक तरख ३ ।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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