SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना विश्व अनंत वस्तुओं का भंडार है जहाँ प्रतिपल अनेक प्रसग बनते रहते है। उन वस्तुओं और घटनाओं को हम सभी देखते एवं जानते हैं पर उनका ठीक से वर्णन करना विरले ही व्यक्तियों के लिये सभव है। इसीलिये कहा गया है-'कहिवो सुनियो देखि बो, चतुरन को कछु और' । वस्तुओं और प्रसंगों को वर्णन करने की एक कला है। किसी बात का वर्णन करते समय उसका तादृश चित्र सा खड़ा कर देना तो बड़े महत्व की बात है ही पर उसे सुदर शब्दों में दृष्टांतों और उपमाओं के साथ वर्णन करना यह उससे भी अधिक महत्व की बात है। भारतवर्ष में प्राचीन काल से वर्णनकला की परपरा पाई जाती है। प्राचीन जैन थागमों से तो यह भली भाँति सिद्ध है। वैसे तो सभी भागों में जब भी नगर, राजा, चनखड, उद्यान, चैत्य श्रादि का प्रसंग पाया है, वहाँ उनका बडे सुदर ढंग से वर्णन किया गया है । पर उववाह (ओपपातिक। नामक उपांग सूत्र में तो वर्णनो का संग्रह विशेष रूप से पाया जाता है और अन्य भागमा में नगर, राजा श्रादि का वर्णन -- 'उववाइ सूत्र के जैमा जान लेना या कहना' इस प्रकार का मिलता है । ,इन वर्णनों में सास्कृतिक सामग्री प्रचुर रूप से संगृहीत है जिसके सबध में मैंने एक स्वतंत्र निबध में दिशानिर्देश किया है और पटना से प्रकाशित 'साहित्य' नामक पत्र में 'जैन श्रागमों की वर्णन शैली' का सक्षिप्त परिचय भी प्रकाशित किया गया था। “वर्णनसंग्रह के दो महत्वपूर्ण ग्रंथ-जैन आगमों की वह पर परा परवर्ती साहित्य में भी पाई जाती है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश काव्यों और कुछ गद्यग्रंथों में भी कवियों एवं विद्वानों ने विविध प्रसंगों में नगर, राजा रानी, ऋतु श्रादि का वर्णन किया है। प्राचीन राजस्थानी और गुजराती में वह परंपरा और भी विकसित रूप में पाई जाती है। मैथिली और महाराष्ट्री भापा के भी 'वर्णरत्नाकर' एवं 'बैजनाथ कलानिधि' इस परंपरा की व्यापकता को सूचित करते हैं। इनमें से वर्णरत्नाकर को तो काफी प्रसिद्धि मिल चुकी हे पर 'बैजनाथ कलानिधि' का विवरण अव से २३ वर्ष पूर्व पत्तनस्थ प्राच्य
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy