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________________ (१५६) प्रत्यक्षकाल, ककाल, कराल वेताल । काकीडा उदिर सर्प घेरोला नी माल धरतु । ताल तमाल जघा घर हरतउ। पग छापरा, कान टापरा, पाखि ऊंटी, निलाडी भूडो, धमिया लोह गोला, तिसिया वेउ होला । एवं विध वेताल ।। ११२ ।। जी० (४) वेताल (२) सूप निसा नस्व. लोहउ निमि प्रांगुली, लोह तणी नीसाह निमा पाय । ताल वृक्ष निमी टोर्च जघ, जिसी कभी तणउ खापस तिगड उदरू । जिमन प्रवहण तणउ कूया खमउ, तिसि वाह । लामा छोट, नोवउ नाकु, वाकउनिलाह, त्रीभीटउ माथउ । इसउ रौद्र विकरालु वेतालु । (५) वेताल (३) मनुष्य फीटि हुयो वेताल, फठि विलंबित रडमाल । करसल पातके, वभुनाभिभूत, जिसो जमदूत । कान टोपरा, पग छापरा । अाख ऊडी, पेट कूडी। आख राती, हाथे काती। भूडी छाती। विकराळ वेस, विहावे देस। हडहडाट हॅसे, धरामडळ फंसे । मस्तके अगार बळे, रवि जिम कळाले। इस्यो रौद्र रूप, तेहनो स्वरूप । कान कूप केतलो वखाणू, इत्यो वेताल । (५) वेताल वर्णन (४) भीषणाकार, अति रौद्राकार । मुखि करतउ फार फुत्कार, कृतान्तावतार । मुखि मेल्हत उ झाळ, हाथि देतउ ताळ । मस्तकि कपिल केश, स्थपुठ, ललाट । घटितका कराल दृष्टि, मुख विवर विरचितागार दृष्टि । कर्ण कुहर विहरमाण, भुजंगराज भीषण । ,
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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