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________________ (. १३३ ) तुच्छ मच्छर, कर्कश स्वरु | धर्म रंगु, गुरुजन प्रशंसा भंगु । तुच्छ सुकृत करणी प्रमाद, बहु मृषावाद । साप्रत वत्त'द्द इसउ कलिकालु, जिहां को नहीं कृपालु, दर्शन उत्खलु । श्रार्यजन स्वल्प, घणा कुविकल्प 1 बहु कराक्रान्त देश मंडल, पृथ्वी मंद फल | नारी विकल निरर्गल, ऋषि भाजन खल | साधु लोक श्राकुल, रान तुच्छ बल । गुरु कलह कदल, धर्माचार्य चंचल, भविक धर्मं विकल । खड वृष्टि, बहु स्त्री सृष्टि | लोक द्रव्य दृष्टि, सर्व लोक मिध्यात्व दृष्टि । लोक घटियइ कपटि दल, इसी प्रवर्त्त कलि ॥ १०० ॥ ( मु० ) २४ --- कलिकाल -वर्णन ( २ ) सप्रति वर्त्तह्नं कलिकाल, महा कूड़ कपट काल ! चोर चाड साक्षात हालाहल, सासू बहू परस्पर कलि । गुरु शिष्या जायद खांध बलि, अन्याय कुरीति देश मंड़लि /राजकुल रुंघा खली, राय राखा वर्त्तई छली । क्षत्रिय नासहं दीठहूं दलि, भला माणूस हुइई तांतलि | पृथ्वी मद फ्ल, मंत्र सवे निफल । ast मूली रस विकल, कुल स्त्री निरर्गल । न्यायी राय तुच्छ दल, चरड बहुल 1 वाट पाडा तणा कलकल, धर्म गुरु चपल । पापोपदेश कुशल, मिध्यात्व निश्चल | लोक माया बहुल, अल मंगल | इइ कुकालि, श्रवसर्पिणी कालि । अल्प क्षीर गाइ, निःस्नेह माह | ---- भक्ष्यभोज्य निरास्वाद, स्त्री तणी जाति श्रमर्याद, 1 रहस भेट, रस छेद | क्रूर संचना, गुरु वंचना । ऊषा स्तोक, निवाखिना लोक । 1 ०
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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