SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२१ ) काइ न कहवाई छै, दूती उतावली धाई छै, संदेसो कहवा जाइ छै । केड़ते कसै छै, चोरते धँसै छै, कूतरा ते भसै छै । है, नीला जवते चरै छै । घोड़ा ते ह कोटवाल ते फिरै छै, चोकी ते करै छै । रणतूर बजावै छै, 'खबरदार- खबरदार -- जागते रहियो - जागते रहियो' कही नै जगावै है, चोर-चकार नै भजावे है । घणी सी कहीइं वात, दुसमणनी न पूगै घात । मनुष्यनी नो यात, एहवी अंधारी रात । (स० ३ ) ७ अंधकार - वर्णन (१) काली लली - रात्रि रात्रि प्रतिइ मिली । निसी भ्रमरनी पाख, जि० श्रजनाचल नउ शिखर | जि० ० कुमारास सुख, जि० स्त्रीतरणी वेणि । जि० यमुना प्रवाह, नि० कजल नउ वार | जि० गुलीनउ रंग, निसिउ कसीसनउ जल || ७३ ( स० १ ) वसंतऋतु - वर्णन (१) ८ विरहिणी हसंतु, पुहतउ वसतु । फूलइ वणराइ, नगरमाहि न फिराइ | लीइ तिम' निजईय वनि । मेल्ही वइराग, खेलीइं फाग । कामरान ना कूंप, तिसा मस्त कि रचीह चूप । ति सुविशाल, श्राव नी डाल ! तिहा बाधीइ हिडोला, रमइ नर भोला । फूलहरा भरीइ, भला कदलीगृह अनुसरी | कोइलि वासs, रुलीईत विलासी नासइ | भर्त्ता स्त्री र लिए, खेलहि खडोसली ए । विहसी वउलसिरी, भमई रहइं भमर पाखलि फिरी । चपक नी कली, चपक ऊपर नीकली । मस्त कि मरू, पहिरे लोक गरुश्रा । रितुराज नउ भालु, वनि मद्दक्यउ वालउ | परिमल भारी, उल्लसी देव गंधारी । दमणउ पहिरी, कुण एक चित्तु न हरीह ।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy