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________________ ( ६३ ) कवहरणइ सुखासण ( वृत्ति ) पलइ छइ । कवहरणइ चउखंडी सीकरि । वृत्ति) पल छइ । कवहरणइ सुवर्णमय कलस पलइ छइ । कवणइ धन बिन्धु पलद्द छह । कवहरणइ पताका ० कवहरणइ घंटा. कवहरणइ चमर० "कवहरणइ श्रागच्छीता शृंगार०" | कवहरणइ भुंजाई रूप्यमय स्थालु प० कवहरणइ शालिउ कुरु । कवहरणइ रू • ( पु० 33 ,, "" साहण समुद्र, वयरि घरछु । विपक्ष कंटक, चहुच्छ मल्लु । 'धाडी तिलकु, दगदेक वीर । इसा सुभट | ( पु० ० ) ० ) ( पत्राक ५ वा श्रप्राप्त ) ६३ सुभट ६४ गढ (१) ग गउ, न विसमउ, जसु तरणा पाइया पातालि पइठा, भीति गगनि गई, महागज इसा कोठा, गरुई पोलि, निवड कपाट, लोहमइ भोगल, ऊपर कसीसा तणी पक्ति, विद्याहरा तणी पद्धति, यंत्र तणी श्रेणि, ढीकुली तणी परपरा, गढ़ बाहरि वा कवला मणा तणउदुर्ग, खाई तगउ दुर्ग, जल तरणउ दुर्गा, थल तणउ दुर्ग, नइ परचक्र तणउ प्रवेश नही, हाथिया ढोह नहीं, पाखरिया रहण नहीं, सूयण थानक नहीं, पायल वाह नहीं, नीसरणी ठाउ नहीं, भेद सभावना नहीं, निसर वज्र खटितु, विश्वकर्मा निर्मापित हुइ । किं बहुना | पराक्रम असाध्यु, बुद्धि मंतर योग्य, देवहद्द असाध्य इसउ गढ़ । ( पु० ० ) ६५ गढ (२) किलास जिम उंचउ । प्रधान प्रतोली द्वार । सघर कपाट । लोह मय भोगल विजय हरी तणी बरज ।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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