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________________ 674 पुटम् प्रमाणवचनम् संसर्गे च निरंश 246 202 178 310 .... 382 .... 210 .... 292 संस्थानं नाम सहकारिकृत सहन्ते सहते क्वाप्य सहोपलम्भ संज्ञा चोत्पत्ति सात्विक एकादशकः साधर्म्यवति सान्तःकरणा सान्तराविन्द्रिया सापि नः प्राक्तनी सामान्यतस्तु दृष्टा 451 पुटम् प्रमाणवचनम् 191 | सेनावनवद्ग सेयं देवतै 203 सैव तदवस्थस्यो .... 721 | सैक्ष्म्यिात्तदनुप स्कन्धा केशो स्कन्धात्मा लोकः स्कन्धायसर्व स्थित्यर्धं मह स्पष्टतरस्सा | स्पृशतोप्य स्मृतीनामप्र | स्मृत्यनवकाश | स्मृतश्श्रुति स्मृतिषूक्त स्यातामत्यन्त स्वक्रियादिविरो स्वप्नवत्संसृतिः स्वप्रवृत्त्यदि स्वप्ने च मानसं | स्वभावनिय स्वयंसमा स्वरसन्ध्यात स्वर्भानुरा स्वरूपमेत्र स्वात्मभावा .... 178 | स्वात्मावभास स्वैस्स्वैद्यवस्थितैः 138 | स्वोपादान .... 192 .... 327 607 .... 612 .... 61 .... 158 443 157 ..... 607 339 425 423 302 295 सामुद्राम्भसि सार्वज्ञप्रागभा सार्वज्ञं मानसं सावयवं परतन्त्रम् सासत्ता न स्वतं सिद्धं च मानसं सिद्धानुगम C७७ .... 292 .... 334 .... 48 .... -608 252 607 4 1 .... 205 237 सिद्धाऽनवस्थिति सिद्धो ह्यन्यत्र सूयते पुरुषा सूक्ष्मं प्रमाणतश्च सूक्ष्मास्तेषां 337 141 | स्वर
SR No.010754
Book TitleTattvamukta Kalap and Sarvarthasiddhi with Ananddayini and Bhavapraksa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD Srinivasachar, S Narsimhachar
PublisherD Srinivasachar, S Narsimhachar
Publication Year1933
Total Pages746
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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