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________________ पत्र सोलहवां रेखा और चिह्न - .. - J प्रिय बन्धु । इस पत्र मे तुम्हारा- ध्यान रेखा और चिह्नो की उपयोगिता की तरफ खींचना चाहता हूँ। क्योकि इनके योग्य उपयोग से भी याद रखने में बहुत सरलता होती है। पिछले पत्र मे सकलन के वर्णन प्रसंग में जो वाक्य लिखे गये हैं, उनमे कितनेक शब्दो के नीचे रेखाएं खीची गई हैं। जैसे कि भ्रमर विशेष रूप से कहाँ मिलता है ? ... । , बगीचो मे। । । __यहाँ भ्रमर और बगीचा ये दो शब्द याद रखने पर पूर्ण वाक्य बराबर याद आ जाता है। सिर्फ उसे पढते समय बगीचे मे भ्रमर फिर रहा है, ऐसी कल्पना करना अपेक्षित है। अब एक बड़ा वाक्य लेकर रेखाओ का परीक्षण करके देखो। यह वाक्य निम्नोक्त है-.. - ब्रह्मसूत्र पच्चीस बार बाँचो या सुनो, पंचदशी का पच्चास बार पारायण करो, गीता को रट-रेट कर कण्ठस्थ करो, महान् सत की सेवा मे रात-दिन उठ बैठ करो, पर तुम्हारे मन का कचरा तुम्हारे सिवाय कोई भी ठीक-ठीक नहीं देख सकेगा और तुम्हारे सिवाय उसे कोई भी निकाल नही सकेगा। इस वाक्य मे निम्नोक्त प्रकार से रेखाएं खीचोगे तो पूर्ण वाक्य खूब सरलता से.याद रह जायेगा। - - - ब्रह्मसूत्र पच्चीस बार बाचो या सुनो, पचदशी का पच्चास बार- पारायण करो, “ीता को रट-रट कर कठस्थ करो, महान सन्त की सेवा मे रात-दिन उठ बैठ करो, पर तुम्हारे मन का कचरा
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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