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________________ स्मरण कला ? ७१ शकुन्ताला ने दुष्यन्त के समक्ष मुद्रिका की बात इसलिए उपस्थित की थी कि उसके स्मरण से दुष्यन्त को पूर्व स्नेह भाव की स्मृति हो। हमारे कुछ कविताएं कंठस्थ की हुई होती हैं और समय गुजरते भूल जाते है; परन्तु अगर उसका प्रथम शब्द याद आए तो सम्पूर्ण कविता बराबर याद आ जाती है, इसका कारण क्या है ? इसका कारण यही है कि हमारे मन मे प्रविष्ट हुआ कोई भी अनुभव या विचार, अनुभव या विचार के साथ संकलित होता है। तुम मनुष्य के विषय मे विचार करने लगोगे कि उसके रूप रग, वेष, स्वभाव, स्थान, जाति आदि विषयो का स्मरण पाएगा ही । तुम घोडे पर विचार करने लगोगे कि उसका देखाव, शृगार, उराकी शीघ्रता, उसका स्वभाव आदि मन. के समक्ष उपस्थित हो जायेगे। इस रीति से किसी संत पुरुष का विचार करो कि उसकी सौभ्यता, उसका उपदेश, उसका जीवन बिना याद आये नही रहेगा। इस तरह एक विचार या अनुभव के साथ दूसरे विचार या अनुभव का ताजा होना, उनसे साहचर्य का सिद्धान्त कहलाता है। साहचर्य जितना समृद्ध होता है, स्मरण उतना ही अधिक सरल होता है, यह बात तुम्हे सदा याद रखनी है । इसलिए एक वस्तु को याद रखने के लिए उसकी बन सके उतनी विशेषताओ को, याद रखो। यदि तुम्हे रीछ को याद रखना है तो उसका विचार इस प्रकार करो कि रीछ रग से काला होता है। वह भयानक प्राणी है। देह से राक्षस समान होता है। शरीर पर रूखेबाल होते है । 'वह वृक्ष से सटा हुआ खडा है । वह मुंह फाड रहा है, आदि-आदि । इस प्रकार से यदि तुमने रीछ पर विचार किया है तो याद करते समय उनमे से कोई न कोई बात तुम्हारे स्मृति पटल पर उतर ही आयेगी और उससे रीछ याद आ जायेगा।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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