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________________ स्मरण कला ६७ लडका, लड़की, युवक, युवती, वृद्ध, सेठ-सेठानी, राजा-रानी, नौकर, चपरासी (मनुष्य) कुर्ता, छत्ता, जूते, अण्डा, थाली, चमचा, कलम (वस्तुएँ) खेत, मैदान, गड्ढा, टेकरी, पहाड (जमीन) झरना, नदी, तालाब, सरोवर, दरिया (पानी) आकाशी पदार्थों में सूर्य-चन्द्र की कल्पना जल्दी हो सकती है, तथा अधेरी और चांदनी रात की कल्पना भी शीघ्र हो सकती है। इसलिए उन्हे प्रमुखता देनी चाहिए। प्रारम्भ मे ये वस्तुएं कदाचित् बहुत अस्पष्ट दिखाई देंगी, पर अभ्यास से स्पष्टता होती चली जायेगी। ऐसे करते हुए तुम थोडे समय मे ही कल्पना के द्वारा इन वस्तुओ को बराबर देखने लगोगे। । शुरुग्रात मे कल्पना के द्वारा दृष्ट वस्तुप्रो का एक कागज पर वर्णन लिखो। उसकी मूल वस्तुओ के साथ तुलना करो। इसलिए कि उसमे रही त्रुटियाँ या कमियाँ सुधरती जाए। इस प्रकार के अभ्यास से वस्तुयो को देखने की कला मे भारी परिवर्तन हो जायेगा। अदृश्य पदार्थों के भाव की कल्पना हम स्वतन्त्र प्रकार से नही कर सकते। जैसे कि-सत्य, दया, सहन-शीलता, विनय, शक्ति सौदर्य, मन, आत्मा आदि; परन्तु इन भावो की कल्पना भाववाहको के माध्यम से की जा सकती है। जैसा कि-हरिश्चन्द्र के माध्यम से सत्य, महावीर के माध्यम से दया, आर्य स्त्री की कल्पना से सहनशीलता, विद्यार्थी की कल्पना से विनय, भीम की कल्पना के माध्यम से शक्ति, युवती की कल्पना के माध्यम से सौदर्य, मनुष्य की कल्पना से मन, सजीव पदार्थों की कल्पना से आत्मा।। वस्तुप्रो की तरह क्रियाओ की भी कल्पना करो। जैसे कि-बालक रोता है, लडका कूदता है, एक मनुष्य दौडता है, एक मनुष्य रोकड लिखता है, एक मनुष्य कारखाने में काम कर रहा है, एक मनुष्य कपडे धो रहा है, एक मनुष्य पूजा करता है, आदि आदि । हरेक प्रकार की क्रिया की कल्पना की जा सकती है। उनमे जिनका परिचय बहुत ज्यादा होता है उनकी कल्पना सरल होती है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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