SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (5) श्री नानालाल, एम जानी एव रविशकर रावल के अधीन रहार भी पापने चित्रकला के लिये कार्य किया। छोटी अवस्था से ही लेखन, भाषण, पत्रकारिता, चित्रकला प्रादि मे प्रापकी रुचि रही थी । छामजीवन मे थापने 'चाय' एवं 'प्रभात' नामक पत्रो का सचालन और सम्पादन किया। बाद मे इनको मिला कर 'छात्रप्रभात' नामक पत्र निकाला । 'जैन-ज्योति' नामक पत्रिका भी प्रकाशित की । 'जल-मन्दिर पावापुरी', 'अजन्ता नो यात्री' नामक खण्डकाव्य लिखें। अापने अब तक 362 छोटो-वडी पुस्तकें लिखी है, जिनकी 25 लाख से भी अधिक प्रतियां छप चुकी हैं। यह वात प्रापको लोकप्रियता और प्रतिभा को स्पष्टत इंगित करती हैं। 1934-35 मे अहमदाबाद मे स्वतन्त्र रूप से 'ज्योति कार्यालय' के नाम से प्रकाशन संस्था स्थापित कर प्रथम वार मुद्रण कार्य प्रारम्भ किया किन्तु बाद में इसे बन्द कर देना पडा । कालान्तर मे धीरजभाई वम्बई जाकर रहने लगे। सन् 1948 मे वहां सेठ अमृतलाल कालीदास दोशी के सम्पर्क मे श्राकर 'जैन साहित्य विकास मण्डल' नामक सस्था की स्थापना की। वहां प्रतिक्रमण सूर्य की प्रवोध टोका को तीन भागो मे तैयार कराया। मुनिराज यशोविजय जी की प्रेरणा से 'धर्मबोध ग्रन्थमाला' की 10 पुस्तकें तैयार की। वि- स. 20 4 श्रावण अष्टमी को श्री धीरजलाल भाई ने स्वतन्त्र रूप से 'जैन साहित्य प्रकाशन मन्दिर' की स्थापना की और जैन धर्म, जैन सस्कृति तथा जैन साहित्य से सम्बद्ध साहित्य सृजन की धारा को निरन्तर प्रवाहशील रखा। जैन शिक्षावली की तीन श्रेणियो मे 36 पुस्तिकाये लिखकर आपने समस्त जैन वाड मय की आवश्यक प्राथमिक जानकारी को बडे ही सरल रूप में प्रस्तुत कर दिया । श्री वीर वचनामृत (गुजराती) तथा श्री महावीर वचनामृत (हिन्दी) प्रकाशित किये । इन ग्रन्थो का सार अग्रेजी मे 'दि टीचिम्स ऑफ लॉर्ड महावीर' के रूप मे प्रस्तुत हुआ। पाठको के लिये आपने 'जिनोपासना, नमस्कार मन्त्रसिद्धि, भक्तामर रहस्य, श्री ऋषि मण्डल आराधना' जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो की रचना की और मन्त्र-तन्त्र की अटपटी साधना को सुबोध बनाने के लिये 'मन्त्र चिन्तामरिण' तथा 'मन्त्र दिवाकर' नामक मननपूर्ण ग्रन्थ लिखे ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy