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________________ स्मरण कला ५७ नही और चचलता के कदम कही ठहरते ही नही । वाणी देवी अपने काम मे चतुर है पर उसे सबके साथ बात करना ही ज्यादा अच्छा लगता है। इन सब मे बुद्धि देवी बडी अनुभवी एव निष्णात है, पर वे वृद्ध हो गई हैं। बुढापे के कारण उनकी तबियत स्वस्थ नही रहती। ___ इधर महाशय अनगराय और मोहराय शरीर से दर्शनीय हैं पर अन्धे है, क्रोधराय की भी यही दशा है । भय भूपाल को कोई भी बात कही जाए तो वह दूर भागता है और हर्षदेव क्रीडा-स्थल से कभी बाहर नहीं निकलते, जब देखो खेल ही खेल । इधर शोकदेव को हर्षदेव की क्रीडा बिल्कुल भी पसन्द नही, इसलिए वह उसमे दखल देता ही रहता है और इस कारण बार-बार दोनो मे द्वन्द्व युद्ध होता रहता है आखिर मैं बीच मे पडकर उन्हे शान्त करती हूँ तब ही वे विश्राम लेते हैं। यह मानदेव प्रचण्ड है, पर इसके पीठ का मेरुदण्ड झुकता ही नही और संशयदेव के स्वभाव को तो आप जानते ही है कि कोई भी नई बात आई कि व्यग्र हुए। जब उस नई बात को तोड डालते हैं तब ही सन्तोष का अनुभव करते हैं । __महाराज उत्साह स्वय बहुत सुन्दर हैं, पर उनका ससर्ग बहुत खराब है। उनका साथी प्रमाद उन्हे बार-बार उत्पथ मे ढकेल देता है और उनके मित्र प्रयास, साहस, उद्यम, धैर्य एवं पराक्रम तो उनकी ही चाल मे चलने वाले है। इनमे अपनी स्वतन्त्र कार्य शक्ति नही है। अगर महाराज उत्साह चले तो प्रयास भी आगे बढ, यदि प्रयास बढे तो साहस भी चलें और साहस चले तो उद्यम, धैर्य तथा पराक्रम भी बढ चले, परन्तु ये सब मनमौजी सदृश स्वभाव वाले है। जब तक महाराज उत्साह के वर्तन-व्यवहार (रीतभात) मे मौलिक सुधार नही होगा तब तक उनके भरोसे नही रहा जा सकता। इसलिए ही कुछ समय से आपकी प्रतीक्षा कर रही थी। अब आप पहेच गई है। इस मन्दिर को उचित प्रकार से सज्जित कर उत्सव के योग बनाएगी ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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