SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पत्र ग्यारहवाँ महारानी काल्पना कुमारी प्रिय बन्धु स्मरण-शक्ति के विकास मे कल्पना का महत्वपूर्ण स्थान होता है, यह विचार तुम्हे प्रथम दृष्टि मे कदाचित् विचित्र लगेगा, परन्तु जब तुम इसकी वास्तविक शक्ति से परिचित होओ तब तुम्हे महसूस होगा कि-मैं आज तक इस महान् शक्ति के यथार्थ उपयोग से वास्तव मे वचित हो रह गया । __ कल्पना क्या काम करती है, इसका विवेचन मैं कल्पना के माध्यम से ही प्रस्तुत कर रहा हूँ । इसे जानने के बाद तुम अपने अभिप्राय को निर्णय पर पहुंचाना । मनोमन्दिर मे उदभूत एक भव्य उत्सव को यह कहानी है मनोमन्दिर के 'अन्त.करण' नामक विशाल खण्ड मे कितने ही सुन्दर प्रासन जमे हुए थे। उन प्रत्येक पर आगन्तुक अतिथियो के नामांकित पत्र रखे हुए थे। समय होते ही सब आकर बैठने लगे उनमे सर्वप्रथम क्षुधा देवी प्राई, पीछे तृषा देवी, निद्रा देवी, लज्जा देवी और तृष्णा देवी पधारी। उन सबने अपने-अपने आसन ग्रहण किए। दूसरी तरफ अनगराय, मोहराय, क्रोधराय, भय भूपाल, हर्षदेव, शोकदेव, मानदेव और सशयदेव आदि का प्रागमन हुआ। वे भी अपने-अपने प्रासनो पर विराजमान हुए। उसके बाद श्रीमती स्मृतिदेवी पधारी, उनका ठाठबाठ अलग ही था। उनके साथ जिज्ञासादेवी, ईहादेवी, तुलनादेवी, बुद्धिरानी और वाणीदेवी भी आयी। उन सबने अपने-अपने पासन सभाले ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy