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________________ पत्र नवम इन्द्रियों की कार्यक्षमता प्रिय बन्धु । मन के रग ढंग को सुधारना-मन की स्थिति को संस्कारित करना, यह स्मरण शक्ति के विकास का मूल पाया है। इस पाये को अनन्य रूप से मजबूत बनाने के लिये एकाग्रता अनिवार्य है, जिसकी सिद्धि का मुख्य आधार उचित चर्या पर टिका हुआ है । इसलिए तुम्हारा ध्यान सर्व प्रथम एकाग्रता और चर्या की तरफ आकृष्ट करता है। यह बात तुम निश्चित मानना कि 'नीव विना की दीवार' यह जैसे एक असगत कल्पना है अथवा 'खेत बिना की खेती' यह जैसे एक निरावार उडान है, वैसे ही साधना बिना की सिद्धि, यह भी एक असगत और निराधार कल्पना है । इसलिए साधना के साथ भली प्रकार सपृक्त रहना और क्रमश उसमे आगे बढना, यही सक्षिप्त, सरल और हितावह मार्ग है । प्रथम मूल अक्षरों को सीखने पर ही जैसे शब्द, पद, वाक्य, परिच्छेद, प्रकरण और ग्रन्थो को लिखा जा सकता है अथवा ०, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८ और ह इन दश अको को सीखने पर जैसे गणित के अनेक हिसाब सीखे जा सकते हैं वैसे ही स्मरण शक्ति से सबद्ध कुछेक सिद्धान्त ठीकठीक समझ लेने पर और उनका उपयोग करने की आदत डालने पर 'अधिक' और 'अधिक सुन्दर' स्मरण रह सकता है । __ इस पत्र मे तुम्हारा ध्यान इन्द्रियो की कार्यक्षमता की तरफ प्राकृष्ट करना चाहता हूँ क्योकि विषयो को ग्रहण करने मे मुख्य साधन इंन्द्रियाँ है । सम्भवतः तुम्हारा प्रश्न होगा कि एकाग्रता से उत्पन्न मन का बल जब विषय को यथार्थ रीति से ग्रहण कर
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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